Jan 2, 2009

Silent cries of a REFUGEE



उस मिटटी को छोड़ रहा था
 
उस मिटटी को छोड़ रहा था,जान बचा कर भाग रहा था,
चलता रहता थम थम के वो,
पोटली टटोले रुक रुक के वो,
अंदर आंसू बहा रहा
था,उस मिटटी को छोड़ रहा था,जान बचा कर भाग रहा था|
 

माँ की सांसें फूल गई, बच्चा थक कर रोने लगा,
बाप को सहारा देने वाला, घुटने का बल गिरने लगा,
लहू रीस रीस गीर रहा था,
उस मिटटी को छोड़ रहा था,जान बचा कर भाग रहा था|

रिश्ते नाते सब टूट गए, मौत का ऐसा तांडव था,
शौक का भी समय नहीं,इतना लाचार वोह मानव था,
अश्कों का बहाव रुक सा रहा था,
उस मिटटी को छोड़ रहा था,जान बचा कर भाग रहा था|

वो पीली पीली सरसों थे, जीसका घम कुछ ज्यादा था,
पैरों से उसे रौंदना, वैसे कहाँ का न्याय था,
जलता खेत पुकार रहा था,
उस मिटटी को छोड़ रहा था,जान बचा कर भाग रहा था|

रह रह कर बदले के लीये कदम वो पलटता,
पर तबी उसे गिरती माँ और रोता बच्चा नज़र आता,
आखिर मातम का कैसा अनोखा था माहौल ये,
बर्बादी का एक ऐसा था बीगुल ये,
Hindu होने की वो कीमत चूका रहा था,
उस मिटटी को छोड़ रहा था,जान बचा कर भाग रहा था, 

उस मिटटी को छोड़ रहा था, जान बचा कर भाग रहा था||

---------A refugee ------

3 comments:

  1. "take my breath away ...but dont take away my identity , my land ...."

    beautifuly portrayed the pain of leaving one's own land ....keep writing ..

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  2. Bapu ye kaisa rahe ga :
    उस मिटटी को छोड़ रहा था,
    जान बचा कर दौड रहा था

    Waise bahut achi depiction hai hindoo refugees ka...
    "Once a refugee ,always a refugee"
    So often the world sits idly by, watching ethnic conflicts flare up, as if these were mere entertainment rather than human beings whose lives are being destroyed. Shouldn't the existence of even one single refugee be a cause for alarm throughout the world?

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  3. @ dogra

    yaaar..u are very much right....but the trouble is ....very less people think that way...

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